मुग़ल बादशाह अकबर जीवन परिचय | Akbar Biography in Hindi

मुग़ल शासक अकबर | जीवनी, इतिहास, पत्नी, पुत्र, नवरत्न, मकबरा, रोचक तथ्य और शासनकाल

अकबर कौन था? (Who was Akbar?)

भारतीय इतिहास के महान शासक अकबर का पूरा नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था. बाबर और हुमायूं के बाद अकबर ने शासन संभाला था. वह मुगल वंश का तीसरा शासक था. अकबर के पिता का नाम नसीरुद्दीन हुमायूं था. वह मात्र 13 वर्ष का था, तभी वह गद्दी पर बैठ गया था. अपने पिता के बाद उसने अपने साम्राज्य का विस्तार लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में किया था. अकबर का शासनकाल सैन्य, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभुत्व के लिए जाना जाता है.

उन्होंने प्रशासन की एक केंद्रीकृत प्रणाली की स्थापना की और विवाह गठबंधन और कूटनीति की नीति अपनाई. अकबर ने हिंदू लोगों के प्रति भी उदार दृष्टिकोण अपनाया था, इसके कारण वह हिंदुओं के बीच प्रसिद्ध हो गया था. वह लोगों का पसंदीदा शासक भी था. अकबर की गिनती मुगल वंश के उन महान राजाओं में होती है, जिसने कला और संस्कृति को संरक्षण दिया था.

वह साहित्य में गहरी रुचि रखने वाला शासक था. आज के इस लेख में हम मुगल वंश के महान शासक अकबर की जीवनी पर विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं। साथ ही हम उनके द्वारा लड़े गए प्रसिद्ध ‘हल्दीघाटी’ के युद्ध के बारे में भी बात करने जा रहे हैं. तो चलिए दोस्तों शुरू करते हैं.

अकबर

मुग़ल शासक अकबर की जीवनी (Akbar Biography)

पूरा नाम (Full Name) जलाल उद-दीन मुहम्मद अकबर (Jalal-ud-din Muhammad Akbar)
जन्म (Birth) 15 अक्टूबर 1542
जन्म स्थान (Birthplace) अमरकोट (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित)
पिता का नाम (Father Name) हुमायूँ
माता का नाम (Mother Name) हमीदा बानो बेगम
भाई-बहन (Siblings) NA
वैवाहिक स्तिथि (Marrital Status) विवाहित
पत्नी/जीवनसाथी (Wife/Spouse) रुकैया सुल्तान (रुकैया सुल्तान बेगम)

सलीमा सुल्तान (सलीमा सुल्तान बेगम)

भक्करी बेगम (भक्करी बेगम)

गौहर अन निस्सा (गौहर उन निसा बेगम)

जोधा (मरियम-उज़-ज़मानी)

बीबी दौलत शाद (बीबी दौलत शाद)

क़सीमा बानो बेगम

बच्चे (Childrens) जहांगीर, दैन्याल मिर्जा, मुराद मिर्जा, हुसैन, हसन (पुत्र)

अराम बानु बेगम, मेहरुनिसा, खानम सुल्तान बेगम, शाहजदी खानम, शकर-अन-निसा बेगम (पुत्रियाँ)

उतराधिकारी (Successor) जहाँगीर
धर्मं (Religion) इस्लाम, हालांकि अकबर ने दीने-इलाही नामक एक नया धर्म प्रारंभ किया था.
राज तिलक (Coronation) 11 फरवरी 1556
शासनकाल (Reign) 1556 – 1605
निधन (Death) 27 अक्टूबर 1605
मकबरा (Tomb) सिकंदरा, आगरा, भारत

अकबर का प्रारंभिक जीवन (Early Life)

अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को सिंध के उमरकोट किले में जलालुद्दीन के रूप में हुआ था. उनके पिता का नाम हुमायूँ था, जो मुगल वंश के दूसरे शासक थे. अकबर की माँ का नाम हमीदा बानू बेगम था. वर्ष 1539 में शेरशाह सूरी और मुगलों की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था. इस युद्ध में हुमायूँ की हार हुई और उसे भागना पड़ा.

युद्ध के समय हमीदा बानो बेगम गर्भवती थीं, जिन्हें युद्ध के बाद हिंदू शासक राणा प्रसाद ने आश्रय दिया था. अकबर के जन्म के बाद उनका पालन-पोषण उनके चाचा कामरान मिर्ज़ा और अक्सरी मिर्ज़ा ने किया था. अकबर ने बचपन में ही हथियारों का इस्तेमाल करना, शिकार और युद्ध कला के बारे में बहुत कुछ सीख लिया था. हालाँकि उन्होंने बचपन के दिनों में औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी.

इस कारण वह कला और धर्म को अधिक महत्व देते थे. इसके बाद वर्ष 1555 में हुमायूं वापस लौटे और उन्होंने फारसी शासक शाह तहमास्प प्रथम की सैन्य सहायता से दिल्ली पर पुनः कब्जा कर लिया. शासक बनने के बाद हुमायूं ने एक दिन के लिए निजाम सिक्का को राजा बनाया, जिन्होंने चमड़े के सिक्के चलाए थे. उनके पिता ने एक पुस्तकालय का निर्माण भी करवाया था. इसी पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हुमायूं की मृत्यु हो गई. जब उनके पिता की मृत्यु हुई, तब अकबर बैरम खान के साथ सिकंदर सूर का पीछा कर रहे थे.

दोनों की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर हेमू दिल्ली पर हमला कर देता है और उसे अपने कब्जे में ले लेता है. यह सुनकर बैरम खान कलानौर जाता है. वह युद्ध के मैदान में ईंटों से बना सिंहासन बनवाकर अकबर का राज्याभिषेक करता है. उस समय अकबर की उम्र बहुत कम थी, इस कारण बैरम खान को उसका संरक्षक बनाया गया. वर्ष 1551 में अकबर ने अपनी चचेरी बहन रुकैया सुल्तान बेगम से विवाह किया, जो उसके चाचा हिंदल मिर्जा की बेटी थी. अकबर के शासक बनने के बाद रुकैया सुल्तान बेगम उसकी मुख्य पत्नी बनी.

सत्ता की स्थापना (Establishment of Power)

जब मुगल सम्राट अकबर गद्दी पर बैठा तो उसके साम्राज्य में काबुल, कंधार, दिल्ली और पंजाब के कुछ हिस्से ही शामिल थे. लेकिन अफगान सुल्तान मोहम्मद आदिल शाह भारत पर कब्ज़ा करना चाहता था. इसके लिए उसने मुगल साम्राज्य को खत्म करके दिल्ली की गद्दी पर कब्ज़ा करने की कोशिश की. साल 1556 में हुमायूं की मौत के बाद आदिल शाह के हिंदू कमांडर हेमू ने दिल्ली और आगरा पर कब्ज़ा करने के लिए हमला किया. इस युद्ध में मुगल सेना को हार का सामना करना पड़ा.

और मुगल सेनापति तरदी बेग भी भाग निकला. इसके बाद हेमू ने 7 अक्टूबर 1556 को दिल्ली की गद्दी संभाली और भारत में पहले से मौजूद मुगल साम्राज्य की जगह हिंदू शासन की स्थापना की. उस समय अकबर के युवा होने पर बैरम खान को उसका संरक्षक बनाया गया था. अकबर ने अपना शासन दोबारा हासिल करने के उद्देश्य से युद्ध की घोषणा कर दी. इसके बाद 5 नवंबर 1556 को अकबर और हेमू की सेना के बीच युद्ध लड़ा गया, जिसे पानीपत की दूसरी लड़ाई के नाम से जाना जाता है.

इस युद्ध में हेमू की सेना बहुत बड़ी थी. हेमू की सेना में 30,000 घुड़सवार, 1500 हाथी और कई सैनिक शामिल थे. इसके अलावा हेमू को देशी हिंदू शासकों और अफगान शासकों का भी समर्थन प्राप्त था. जबकि अकबर की सेना हेमू से कम थी. लेकिन अकबर की सेना का संचालन कुशल सेनापतियों द्वारा किया जा रहा था.

बैरम खान पीछे से अकबर की सेना का नेतृत्व कर रहा था और कई कुशल सेनापति चारों तरफ से सेना का नेतृत्व कर रहे थे. इस युद्ध में अकबर को मुख्य सेना से दूर सुरक्षा के घेरे में रखा गया था. मुगल सेना यह युद्ध हारने ही वाली थी कि बैरम खान ने एक अन्य सेनापति अली कुली खान के साथ मिलकर उचित रणनीति बनाई. युद्ध में हेमू हाथी पर सवार होकर लड़ रहा था. तभी एक तीर उसकी आंख में लग जाता है. युद्ध में घायल हेमू को देखकर हाथी चालक उसे युद्ध से दूर ले जाने लगता है.

लेकिन मुगल सेना उसका पीछा करती है और उसे पकड़ लेती है. हेमू को पकड़कर अकबर के सामने पेश किया जाता है, फिर मुगल सेना हेमू का सिर काटने को कहती है. लेकिन अकबर ऐसा करने से मना कर देता है परन्तु बैरम खान उसे मार देता है. इस तरह अकबर की सेना यह युद्ध जीत जाती है और अकबर गाजी की उपाधि धारण करता है. इसके बाद मुगल शासन पर बैरम खान का प्रभाव 1556 से 1560 तक बना रहता है.

विरोधियों का सामना (Face Opposition)

शासक बनते ही अकबर ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया था. शासक बनने के बाद अकबर ने उन सभी अफगान शासकों को मरवा दिया, जो उसके रास्ते का कांटा बन सकते थे. जबकि बैरम खान ने हेमू के रिश्तेदारों को बंदी बना लिया. शेरशाह के उत्तराधिकारी जो उत्तर भारत के कुछ इलाकों पर राज कर रहे थे, उन्हें भी भगा दिया गया. इसके अलावा अकबर ने साल 1557 में मुहम्मद आदिल को भी मरवा दिया था. अकबर के शासन में आते ही कई उत्तर भारतीय शासक दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर हो गए थे.

अकबर के साम्राज्य का विस्तार (Extent of Akbar’s Empire)

अकबर शासक बनते ही साम्राज्य विस्तार के लिए पूरी तरह समर्पित हो गया था. शासन संभालते ही उसने बैरम खान के नेतृत्व में अजमेर, मालवा और गढ़कटंगा को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया. इसके अलावा उसने पंजाब के दो शक्तिशाली इलाकों लाहौर और मुल्तान को भी अपने साम्राज्य में मिला लिया था. उसने अजमेर पर भी अधिकार कर लिया था. अजमेर पर अधिकार करने के साथ ही उसने राजपूताना में भी प्रवेश कर लिया था. इसके बाद उसने ग्वालियर का किला भी सूर शासकों से छीन लिया.

वर्ष 1564 में अकबर ने गोंडवाना पर विजय प्राप्त की थी, जिस पर राजा वीर नारायण का शासन था. अपने साम्राज्य विस्तार के दौरान अकबर को रानी दुर्गावती से भी युद्ध करना पड़ा था, जो एक राजपूत योद्धा रानी थीं. इस युद्ध में रानी दुर्गावती पराजित हुईं और उन्होंने आत्महत्या कर ली. यद्यपि अकबर ने उत्तर भारत के लगभग सभी इलाकों पर विजय प्राप्त कर ली थी, लेकिन वह अभी भी राजपूताना की पहुंच से बहुत दूर था. उसने अजमेर और नागौर पर अपना शासन पहले ही स्थापित कर लिया था.

लेकिन जैसे ही उसने राजपूताना में कदम रखा, उसके लिए खतरा पैदा हो गया. अकबर ने वर्ष 1561 में राजपूताना पर आक्रमण करना शुरू कर दिया. अकबर ने राजस्थान में प्रवेश करते ही कई शासकों से युद्ध किया और कई शासकों को कूटनीतिक तरीकों से अपनी अधीनता स्वीकार करवा ली. लेकिन वह मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह को अधीनता स्वीकार करवाने में असफल रहा. इसके बाद करीब 1567-68 में अकबर ने उदय सिंह के खिलाफ एक सेना भेजी थी. इसके परिणामस्वरुप उसका सामना जयमल मेड़तिया और फत्ता सिसोदिया से हुआ.

लेकिन इसके बाद भी वह मेवाड़ को अपने अधीन नहीं कर सका. अकबर ने रणथंभौर के राजपूत शासकों को भी हराया था. उदय सिंह के बाद मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप बने, जिनके पास अकबर ने अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए 4 प्रतिनिधिमंडल भेजे थे. लेकिन वह हर बार असफल रहा. महाराणा प्रताप द्वारा अकबर की अधीनता स्वीकार न करने के कारण हल्दीघाटी का प्रसिद्ध युद्ध हुआ.

विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध (World famous battle of Haldighati)

18 जून 1576 को हल्दीघाटी के मैदान में महाराणा प्रताप की सेना खड़ी थी और उनके सामने अकबर की विशाल सेना थी. अकबर की सेना का नेतृत्व मानसिंह और आसफ खान कर रहे थे. महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व राम शाह तंवर, चंद्रसेनजी राठौड़, रावत कृष्णदासजी चुंडावत और मानसिंहजी झाला झाला कर रहे थे. दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ. जिसमें महाराणा की सेना कम थी और उन्हें जान-माल दोनों का नुकसान ज्यादा हुआ.

इतिहासकार कहते हैं कि यह युद्ध अब तक का सबसे भीषण युद्ध था. ऐसा युद्ध पहले कभी नहीं हुआ था और भविष्य में भी नहीं होगा. कहा जाता है कि युद्ध में महाराणा के घोड़े चेतक ने भी उनका खूब साथ दिया था. लेकिन जब वह लड़ने आया तो चेतक ने हाथी के सिर पर पैर रख दिया ताकि महाराणा मानसिंह पहुंच सकें.

मानसिंह ने हाथी की सूंड पर तलवार बांधी हुई थी, इसलिए उसने चेतक पर हमला कर दिया और चेतक घायल हो गया, लेकिन फिर भी उसने महाराणा का साथ देना जारी रखा. इस युद्ध में चार घंटे तक भीषण संघर्ष हुआ. महाराणा प्रताप की सेना लगातार कमजोर होती जा रही थी. इस युद्ध में महाराणा की सेना ने 1600 से ज्यादा सैनिक खोए, लेकिन अकबर की सेना का आकार बड़ा होने के कारण उसके सिर्फ 150 सैनिक ही मारे गए और 350 से ज्यादा सैनिक घायल हुए.

हालाँकि मुगल सैनिक महाराणा को नहीं पहचान पाए, इस कारण महाराणा प्रताप पहाड़ियों में चले गए. इस युद्ध के परिणाम में अलग-अलग राय दी जाती है. कुछ लोग महाराणा को विजयी कहते हैं तो कुछ लोग अकबर को विजयी कहते हैं. राजपुताना में अपनी पकड़ मजबूत करने के बाद अकबर ने गुजरात, काबुल, कश्मीर, सिंध, बंगाल और कंधार को अपने साम्राज्य में मिला लिया था.

साल 1593 में अकबर ने दक्कन के इलाकों की ओर कूच करना शुरू किया. इस दौरान अहमदनगर पर उसका कब्जा हो गया. 1595 में उसे विरोध का सामना करना पड़ा. 1595 में अकबर ने दक्कन पर हमला किया. दक्कन में अकबर की सेना का सामना शासक रानी चांद बीबी से हुआ. साल 1595 तक मुगल सेना ने क्वेटा और मकरान के आसपास बलूचिस्तान के कुछ हिस्सों पर भी कब्जा कर लिया था. साल 1600 तक अकबर ने बुरहानपुर, असीरगढ़ किला और खानदेश पर कब्जा कर लिया था.

अकबर द्वारा लड़े गए कुछ प्रमुख युद्ध (Major battles fought by Akbar)

युद्ध का नाम वर्ष विपक्षी
मालवा की लड़ाई 1561 बाजबहादुर
मेड़ता की लड़ाई 1562 शरीफुद्दीन
गोंडवाना की लड़ाई 1564 वीरनारायण
मेवाड़ की लड़ाई 1567 उदय सिंह
रणथंभौर की लड़ाई 1569 सुरजनराय
मारवाड़ की लड़ाई 1570 चंद्रसेन
गुजरात की लड़ाई 1572 मुजफ्फर खान
सूरत की लड़ाई 1573 मुहम्मद हुसैन मिर्जा
हल्दीघाटी की लड़ाई 1576 महाराणा प्रताप
काबुल की लड़ाई 1581 मिर्जा हकीम
कश्मीर की लड़ाई 1586 यूसुफ खान
सिंध की लड़ाई 1591 ज़मीबेग
बलूचिस्तान की लड़ाई 1595 अफ़गान पन्नी
अहमदनगर की लड़ाई 1597 चांद बीबी
असीरगढ़ की लड़ाई 1601 मीर बहादुर

अकबर की प्रशासन प्रणाली (Akbar’s administration system)

अकबर ने अपने साम्राज्य का विस्तार पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में किया था. इतने बड़े राज्य को चलाने के लिए अकबर ने केंद्र में एक स्थिर और अनुकूल शासन व्यवस्था स्थापित की थी. अकबर के शासनकाल में प्रशासनिक व्यवस्था लोगों के लिए लाभदायक थी, जिसमें लोगों के नैतिक और सामाजिक मूल्यों में सुधार किया गया था और भौतिक कल्याण पर विशेष ध्यान दिया गया था.

वह सभी धर्मों का उचित सम्मान करता था और सभी धर्मों के बीच समान वातावरण स्थापित करने के लिए कई मौजूदा नीतियों में बदलाव भी किया था. अकबर के शासनकाल के दौरान सम्राट साम्राज्य का सर्वोच्च राज्यपाल था. इसके अलावा न्यायिक, विधायी और प्रशासनिक कार्यों के लिए अधिकारी भी नियुक्त किए गए थे.

उन्होंने शासन में सहायता के लिए कई मंत्रियों की नियुक्ति भी की थी, जिनमें मुख्य सलाहकार (दीवान), वित्त का प्रभारी मंत्री (सदर-ए-सदुर), राजा का धार्मिक सलाहकार (मीर बख्शी) आदि शामिल थे. इसके अलावा, उनके शासनकाल में डाक विभाग पर भी विशेष ध्यान दिया गया था. उन्होंने डाक विभाग के लिए दरोगा-ए-डाक चौकी और मुहतासिब की नियुक्ति की थी. अकबर ने अपने पूरे साम्राज्य को 15 प्रांतों में विभाजित किया था. इन प्रांतों के अधिकारी को सूबेदार कहा जाता था.

प्रांतों को सरकारों में विभाजित किया गया था, जिन्हें आगे परगना में विभाजित किया गया था. सरकार के मुखिया को फौजदार और परगना के मुखिया को शिकदार कहा जाता था. परगना में कई गाँव शामिल थे. गाँव में एक पंचायत होती थी और मुक़द्दम, एक पटवारी और चौकीदार नामक अधिकारी भी होते थे.

अकबर को उनके सैन्य सुधार कार्यों के लिए भी जाना जाता है. सेना को सुचारू रूप से चलाने के लिए उन्होंने मनसबदारी प्रथा शुरू की थी. मनसबदार सेना में अनुशासन बनाए रखते थे और सैनिकों को अच्छी ट्रेनिंग देते थे. मनसबदारों को 33 श्रेणियों में बांटा गया था. इसके अलावा अकबर ने सैनिकों की सुरक्षा और घोड़ों दागने की प्रथा भी शुरू की थी. अकबर के पास चतुररंगिनी सेना थी.

जिसमें घुड़सवार सेना, पैदल सेना, हाथी, तोपखाना और नौसेना शामिल थी. इतनी बड़ी सेना को सुचारू रूप से चलाने के लिए अकबर ने कई अधिकारियों की नियुक्ति भी की थी. अकबर के शासनकाल में आय का मुख्य स्रोत भू-राजस्व था, जिसमें अकबर ने कई सुधार भी किए. उत्पादकता के हिसाब से जमीन को चार भागों में बांटा गया था- पोलज, परोटी, चाचर और बंजर. इसके अलावा जमीन की माप बीघा में होती थी.

उनके शासनकाल में भूमि राजस्व का भुगतान नकद या वस्तु के रूप में किया जाता था. अकबर के वित्त मंत्री राजा टोडरमल थे. उनके शासनकाल में किसानों को कम ब्याज दरों पर ऋण भी उपलब्ध कराया जाता था और सूखे या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय किसानों को आर्थिक सहायता दी जाती थी और उन्हें भू-राजस्व में छूट दी जाती थी. अकबर एक मुगल शासक था, लेकिन उसने हिंदू लोगों के प्रति उदार दृष्टिकोण भी अपनाया.

अकबर ने न्याय व्यवस्था में सुधार किया था और हिंदू रीति-रिवाजों और कानूनों का भी उल्लेख किया था. अकबर के शासनकाल में सत्ता का सर्वोच्च अधिकारी सम्राट हुआ करता था. वह मृत्युदंड भी दे सकता था. अकबर ने वर्ष 1562 में दास प्रथा, वर्ष 1563 में तीर्थयात्रा और वर्ष 1564 में जजिया कर को समाप्त कर दिया था. इसके अलावा अकबर विधवा विवाह का भी समर्थक था. इन सभी कार्यों के प्रभाव के कारण हिंदू जनता ने उसे अकबर की उपाधि दी, जिसका अर्थ है महान. इसके अलावा उसके दरबार में नवरत्न मौजूद थे जो विभिन्न क्षेत्रों में निपुण थे.

अकबर के दरबार के नवरत्न (Navratnas of Akbar’s court)

नाम कार्यक्षेत्र
मानसिंह सेनापति
राजा टोडरमल वित्त मंत्री
अबुल फजल इतिहासकार
फैजी …..
महेशदास (बीरबल) दरबारी
रामतनु पांडे (तानसेन) संगीतकार
अब्दुर रहीम खानखाना साहित्यकार और सेनापति
मुल्ला दो प्याजी शाही दरबार का रख-रखाव
हकीम हुमाम शाही मदरसा के प्रमुख

कूटनीति और राजनीतिक संबंधों का उपयोग (Use of Diplomacy and Political Relations)

कुछ स्रोतों के आधार पर अकबर भारत का पहला इस्लामी शासक था जिसने वैवाहिक नीति के माध्यम से अपने साम्राज्य का विस्तार किया था. उसने कई हिंदू राजकुमारियों से विवाह किया और राजनीतिक संबंध स्थापित किए. अकबर ने जयपुर घराने की जोधाबाई और आमेर घराने की हीर कुंवारी से विवाह किया था. इसके अलावा उसने बीकानेर और जैसलमेर घराने की राजकुमारियों से भी विवाह किया था.

वह इन राजकुमारियों के रिश्तेदारों को अपने दरबार में उचित स्थान देता था, जो उन्हें शासन चलाने में मदद करते थे. कई शासक ऐसे भी थे जो हिंदू और मुस्लिम लोगों को एक जगह नहीं जोड़ पाए. लेकिन अकबर ने राजपूत राजाओं की मदद से मुस्लिम जनता के बीच भी संबंध स्थापित किए थे. अकबर ने राजपूत राजाओं के साथ मिलकर कई युद्ध जीते थे.

उन्होंने मध्य एशिया के उज्बेकों के साथ भी संधि की. जिसके तहत अकबर ने बदख्शां और बल्ख क्षेत्रों में हस्तक्षेप नहीं किया और उज्बेकों ने कंधार और काबुल में हस्तक्षेप नहीं किया. इसके अलावा अकबर ने ओटोमन साम्राज्य के सुल्तान सुलेमान द मैग्निफिसेंट के साथ भी संबंध स्थापित किए. लेकिन वह पुर्तगालियों के साथ संबंध स्थापित करने में विफल रहा. अकबर ने फारस के सफ़वी शासकों के साथ भी बेहतरीन कूटनीतिक संबंध बनाए रखे. सफ़वी शासक शाह तहमास्प प्रथम ने भी अपने पिता को दिल्ली की गद्दी वापस पाने में मदद की थी.

अकबर की धार्मिक नीति (Religious policy of Akbar)

अकबर एक मुगल शासक था लेकिन उसने हिंदू लोगों के प्रति धार्मिक सहिष्णुता और उदार रवैया भी अपनाया था. अकबर एक धार्मिक व्यक्ति था जो अपने धार्मिक विचारों को किसी दूसरे धर्म पर थोपने में विश्वास नहीं करता था. युद्ध बंदियों, उनकी हिंदू पत्नियों और हिंदू लोगों के साथ वह समान व्यवहार करता था. उसके शासन से पहले धर्म के आधार पर कर वसूलने में भेदभाव होता था. धर्म के आधार पर भेदभाव को खत्म करने के लिए उसने कई करों को खत्म कर दिया था.

उन्होंने अपने शासन के दौरान मंदिरों और चर्चों के निर्माण में भी मदद की थी. उनके शाही परिवार में उनकी हिंदू पत्नियाँ और उनके रिश्तेदार भी शामिल थे. इसी वजह से उन्होंने रसोई में गोमांस पकाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. अकबर महान सूफी संत शेख मोइनुद्दीन चिश्ती के अनुयायी थे. वे अक्सर अजमेर में दरगाह की तीर्थयात्रा करते थे. सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर को एक बेटा पैदा हुआ, जिसका नाम सलीम रखा गया. अकबर सलीम को प्यार से शेखू बाबा कहकर पुकारते थे.

वह एक ऐसा शासक था जो लोगों की धार्मिक एकता में विश्वास रखता था. अकबर ने वर्ष 1582 में एक नया धर्म दीन-ए-इलाही शुरू किया था, जिसे तोहिद-ए-इलाही भी कहा जाता था. उसके धर्म को केवल 21 लोगों ने स्वीकार किया था. अकबर के दीन-ए-इलाही धर्म को मानने वाला एकमात्र हिंदू महेशदास (बीरबल) था. वासना, निंदा और अभिमान जैसे गुणों को त्याग कर ही उसका धर्म अपनाया जा सकता था. इसके अलावा वह सभी धर्मों का उचित सम्मान करता था.

वास्तुकला और संस्कृति में अकबर का योगदान (Contribution to Architecture and Culture)

अकबर न केवल एक धार्मिक शासक था बल्कि उसने कई ऐतिहासिक इमारतें भी बनवाईं थी. उसने कई किले और मकबरे बनवाए थे. हुमायूं का मकबरा, अजमेर किला, लाहौर किला और इलाहाबाद किला उसके शासनकाल में ही बनवाए गए थे. अकबर ने फतेहपुर सीकरी शहर की स्थापना की थी. इसके अलावा अकबर ने आगरा किला, जामा मस्जिद, जोधाबाई महल, पंच महल, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, ज्योतिष महल, शेख सलीम चिश्ती का मकबरा और बुलंद दरवाजा बनवाया था. अकबर की गिनती भारतीय इतिहास के उन महान शासकों में होती है जो कला और संस्कृति के संरक्षक थे.

यद्यपि वह स्वयं शिक्षित नहीं था, फिर भी उसने अपने दरबार में विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोगों को नियुक्त किया था जो इतिहास, दर्शन और धर्म के जानकार थे और विभिन्न विषयों का अध्ययन करते थे. उसके दरबार में 9 अधिकारियों का एक समूह हुआ करता था, जिन्हें नवरत्न कहा जाता था. अकबर के नवरत्नों में अबुल फजल, फैजी, मियां तानसेन, बीरबल, राजा टोडरमल, राजा मान सिंह, अब्दुल रहीम खान-ए-खाना, फकीर अजीयो-दीन और मुल्ला दो पयागी शामिल थे. इन नवरत्नों को अकबर के दरबार में उचित स्थान प्राप्त था और वह उनका सम्मान करता था.

अकबर की मृत्यु (Death)

अकबर ने अपने शासनकाल में कई युद्ध जीते थे और अपने साम्राज्य का दूर-दूर तक विस्तार किया था. लेकिन वो कहते हैं ना कि एक दिन सबको भगवान के घर जाना ही पड़ता है. साल 1605 में अकबर लकवे से गंभीर रूप से बीमार हो गए थे. इसके बाद उनकी सेहत में कभी सुधार नहीं हुआ. इसके बाद 27 अक्टूबर 1605 को फतेहपुर सीकरी में असहनीय दर्द के साथ उनकी मौत हो गई. जब अकबर की मौत हुई तब उनकी उम्र 63 साल थी. उन्हें आगरा के सिकंदरा में दफनाया गया था, जहां उनकी कब्र है.

अकबर के बारे में कुछ रोचक तथ्य (Some Intresting Facts About Akbar)

•  अकबर ने मेवाड़ को अपने अधीन करने के लिए उदय सिंह के विरुद्ध सेना भेजी थी. इस आक्रमण का सामना जयमल मेड़तिया और फत्ता सिसोदिया ने किया था.

•  उदय सिंह के बाद मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप थे. अकबर ने उनसे अधीनता स्वीकार करवाने के लिए 4 शिष्टमंडल भेजे थे।

•  महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी, इसी कारण 18 जून 1576 को हल्दीघाटी का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया.

•  हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व मानसिंह ने किया था और महाराणा की सेना का नेतृत्व हकीम खान और झाला बीदा ने किया था.

•  हल्दीघाटी का युद्ध रक्त तलाई में लड़ा गया था जो वर्तमान में राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है.

•  इतिहासकारों ने हल्दीघाटी के युद्ध के परिणाम को अनिर्णायक बताया है.

•  अकबर ने वर्ष 1578 में कुंभलगढ़ की लड़ाई भी लड़ी थी. यह लड़ाई भी अनिर्णीत बताई जाती है.

•  अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई थी.

•  अकबर को सूफी संत शेख सलीम चिश्ती की प्रार्थना से एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी. उन्होंने उसका नाम सलीम रखा और प्यार से शेखू बाबा कहकर पुकारते थे.

•  अकबर ने गुजरात की जीत की याद में फतेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा बनवाया था और कुछ समय के लिए फतेहपुर सीकरी को राजधानी भी बनाया था.

•  उन्होंने वर्ष 1575 में फतेहपुर सीकरी में इबादतखाना का निर्माण भी करवाया, जहाँ वे बैठकर धार्मिक मुद्दों पर बातचीत करते थे

•  शुरुआत में केवल मुसलमानों को ही इबादतखाने में प्रवेश की अनुमति थी, लेकिन वर्ष 1578 में इसे सभी धर्मों के लिए खोल दिया गया.

•  अकबर ने वर्ष 1579 में एक मज़हर पत्र जारी किया था. इसके बाद वे सभी धार्मिक मामलों में सर्वोच्च राजा बन गए.

•  वर्ष 1582 में उन्होंने एक नया धर्म दीन-ए-इलाही शुरू किया, जिसे तोहिद-ए-इलाही भी कहा जाता था.

•  अकबर के दीन-ए-इलाही धर्म को केवल 21 लोगों ने स्वीकार किया था. इस धर्म को अपनाने वाले एकमात्र हिंदू बीरबल थे.

•  अकबर ने वर्ष 1575 में मनसबदारी प्रणाली शुरू की थी.

•  अकबर ने तुलादान, सिजदा, प्यबोस और झरोखा दर्शन जैसी परंपराओं पर जोर दिया और नवरोज़ मनाना शुरू किया.

•  अकबर ने महाभारत का फ़ारसी में ‘रजनामा’ ​​नाम से अनुवाद करवाया था.

•  अकबर के शासनकाल में ही उसकी माँ ने हुमायूँ का मकबरा बनवाया था, जिसे मुग़लों का शाही कब्रिस्तान कहा जाता है.

•  अकबर का अंतिम अभियान असीरगढ़ था. जिसे जीतने के बाद अकबर ने अपने किले को सोने की चाबियों से खुलवाया था.

निष्कर्ष (Conclusion)

इस लेख में हमने भारतीय इतिहास के महान शासक अकबर की जीवनी पर चर्चा की है. इसके साथ ही हमने उनके द्वारा लड़े गए युद्धों और उनके शासनकाल के दौरान मुगल प्रशासन प्रणाली के प्रकार के बारे में भी बात की है. अकबर इतिहास में एक ऐसा मुगल शासक था, जिसने हिंदू लोगों के प्रति भी उदार दृष्टिकोण अपनाया था. उसने अपने शासन को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए अपने दरबार में नवरत्नों की नियुक्ति भी की थी. अकबर को अपने पिता से केवल कुछ क्षेत्र ही विरासत में मिले थे.

लेकिन उन्होंने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर अपने दम पर कब्ज़ा कर लिया था. इसके अलावा उन्होंने महाराणा प्रताप से अपनी अधीनता स्वीकार करवाने के लिए कई बार प्रतिनिधिमंडल भेजे थे. लेकिन हर बार उन्हें असफलता ही हाथ लगी. महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की. इसके कारण अकबर और महाराणा की सेना के बीच खून-खराबा हुआ. यह युद्ध राजसमंद के हल्दीघाटी नामक स्थान पर हुआ था.

अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions)

अकबर ने शासक बनते ही धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई थी. उसने वर्ष 1562 में दास प्रथा को समाप्त किया, वर्ष 1563 में तीर्थ यात्रा कर को हटाया तथा वर्ष 1564 में जजिया कर को हटा दिया. इन कार्यों से प्रसन्न होकर हिन्दू जनता ने जलालुद्दीन को अकबर की उपाधि दी थी, जिसका अर्थ है महान.

अकबर के शासनकाल में विभिन्न भाषाओं की कला और साहित्य को बढ़ावा मिला था. इसके अलावा अकबर ने आगरा किला, जामा मस्जिद, जोधाबाई महल, पंच महल, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, ज्योतिष महल, शेख सलीम चिश्ती का मकबरा और बुलंद दरवाजा बनवाया था.

अकबर फारसी (पर्शियन) भाषा बोलते थे, जो मुगल दरबार की आधिकारिक और साहित्यिक भाषा थी. इसके अलावा, उन्होंने तुर्की और अरबी भी सीखी थी. अपने शासनकाल के दौरान, अकबर ने विभिन्न भाषाओं के विद्वानों और कलाकारों को अपने दरबार उचित स्थान दिया करते थे.

अकबर की मृत्यु 27 अक्टूबर 1605 को आगरा में हुई थी. आगरा उस समय मुगल साम्राज्य की राजधानी थी और अकबर ने वहीं अपने अंतिम समय बिताया. उनकी मृत्यु के बाद उन्हें सिकंदरा, आगरा में दफनाया गया, जहाँ उनका मकबरा स्थित है.

विक्रम सांखला इस ब्लॉग के लेखक है. विक्रम ने सीकर, राजस्थान से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है. विक्रम को इतिहास, खेल, सामान्य ज्ञान, फ़िल्में, अभिनेता, खिलाड़ी आदि विषयों पर लिखने में रुचि है.

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