महाराणा प्रताप | जीवनी, जन्म, जयंती, फोटो, इतिहास, निधन और लड़े गए युद्ध
महाराणा प्रताप कौन थे? (Who was Maharana Pratap?)
महाराणा प्रताप को राणा प्रताप सिंह के नाम से भी जाना जाता है. महाराणा मेवाड़ क्षेत्र के एक वीर राजपूत राजा थे, जो वर्तमान में भारत के राजस्थान राज्य का एक क्षेत्र है. 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ किले में जन्मे, महाराणा प्रताप महाराणा उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे. महाराणा प्रताप को मुगल साम्राज्य के खिलाफ उनके अडिग निर्णय और अपने राज्य की संप्रभुता और राजपूत सम्मान की रक्षा के लिए जाना जाता है.
अपने पिता की मृत्यु के बाद 1572 में मेवाड़ की गद्दी पर बैठे. जब महाराणा प्रताप गद्दी पर बैठे तो उनका राज्य मुगल सम्राट अकबर की आक्रामक विस्तारवादी नीतियों से घिरा हुआ था. अकबर ने कूटनीति और युद्ध के माध्यम से पहले ही अधिकांश राजपूत राज्यों पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया था. हालाँकि, प्रताप के नेतृत्व में मेवाड़ राज्य ने मुगल वर्चस्व के आगे झुकने से इनकार कर दिया और अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए लड़ने का फैसला किया.
महाराणा प्रताप के जीवन की सबसे प्रसिद्ध घटना हल्दीघाटी का युद्ध है, जो 18 जून, 1576 को लड़ा गया था. यह युद्ध, भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसमें प्रताप का मुकाबला अकबर के दुर्जेय सेनापति, आमेर के राजा मान सिंह से हुआ था. संख्या में कम और कम सुसज्जित होने के बावजूद, महाराणा प्रताप और उनकी वफादार सेना ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी. अरावली पहाड़ियों के बीहड़ इलाके में लड़ी गई इस लड़ाई में भारी मात्रा में जान-माल ही हानि हुई थी. हालाँकि इतिहासकारों में मुताबिक इस युद्ध में किसी भी पक्ष को निर्णायक जीत नहीं मिली.
महाराणा प्रताप की विरासत के सबसे स्थायी प्रतीकों में से एक उनका वफादार घोड़ा चेतक है. कहा जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान, चेतक ने खुद गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद घायल प्रताप को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया था. वफादारी और बहादुरी के इस कार्य को राजस्थानी लोककथाओं और गाथाओं में आज भी याद किया जाता है. हल्दीघाटी के युद्ध के बाद, महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ अपना गुरिल्ला युद्ध जारी रखा, कई चुनौतियों के बावजूद हार नहीं मानी.
उन्होंने अपनी राजधानी चावंड के सुदूर और बीहड़ इलाके में स्थानांतरित कर दी और यहाँ भी उन्होंने मुगल सेना के खिलाफ़ लगातार संघर्ष जारी रखा. उनके जीवन और संघर्षों को राजस्थानी संस्कृति और पूरे भारत में कई कविताओं, गीतों और कहानियों में आज भी याद किया जाता है. इस लेख में हम भारतीय इतिहास के महान राजपूत राजा महाराणा प्रताप की जीवनी पर बात करने वाले है.
महाराणा प्रताप की जीवनी (Maharana Pratap Biography)
जन्म (Birth) | 9 मई 1540 |
जन्म स्थान (Birthplace) | कुंभलगढ़ किला, राजस्थान |
पिता का नाम (Father Name) | उदय सिंह द्वितीय |
माता का नाम (Mother Name) | महारानी जयवंता बाई |
प्रशासन की सीट (Seat of Administration) | मेवाड़ (राजस्थान) |
उत्तराधिकारी (Successor) | अमर सिंह प्रथम |
प्रसिद्ध लड़ाई (Famous Battle) | हल्दीघाटी युद्ध (18 जून 1576) |
महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम (Horse Name of Maharana) | चेतक |
मृत्यु (Death) | 19 जनवरी 1597 |
मृत्यु प्राप्ति का स्थान (Place of Death) | चावंड, उदयपुर, राजस्थान |
महाराणा प्रताप का प्रारंभिक जीवन (Maharana Pratap Early Life)
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ किले में हुआ था. उनकी माता का नाम जयवंता बाई था, जो राजस्थान के पाली रियासत के अखे राजा सोनगरा चौहान की पुत्री थीं. विवाह से पहले उनकी माता का नाम जीवन्त कंवर था, जो बाद में महारानी जयवंता बाई बन गईं. महाराणा प्रताप के पिता का नाम उदय सिंह द्वितीय था. महाराणा प्रताप के तीन छोटे भाई और दो सौतेली बहनें थीं. महाराणा के पिता मेवाड़ के राजा थे और उनकी राजधानी चित्तौड़ थी.
वर्ष 1567 में मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर मुगलों ने हमला कर दिया था. इसके चलते उनके पिता ने परिवार सहित चित्तौड़ छोड़कर गोगुंदा जाने का फैसला किया. प्रताप उनके इस फैसले से कभी सहमत नहीं हुए. ऐसा करने पर उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया था. परन्तु उन्हें समझाया गया कि इस समय यही करना सही रहेगा.
महाराणा प्रताप का परिवार (Maharana Pratap Family)
अगर महाराणा प्रताप के परिवार की बात करें तो उनकी पांच बेटियां और सत्रह बेटे थे. लखाबाई, रानी चंपाबाई झाटी, रानी शाहमतीबाई हाड़ा, रानी रत्नावतीबाई परमार, रानी सोलंकिनीपुर बाई, रानी अमरबाई राठौड़, रानी फूल बाई राठौड़, रानी अलमदेबाई चौहान, रानी जसोबाई चौहान और रानी खीचर आशाबाई उनकी पत्नियाँ थी.
महाराणा की रानी राजकुमारी अजबदेह ने महाराणा के पहले बेटे अमर सिंह को जन्म दिया, जो बाद में महाराणा के उत्तराधिकारी बने. कहते हैं कि सफलता का रास्ता इतना सीधा नहीं होता. महाराणा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उन्हें कई साल जंगलों में बिताने पड़े. जंगलों में रहने के दौरान वे सिर्फ पकी हुई रोटियों पर ही गुजारा करते थे.
महाराणा प्रताप का शासन में आगमन (Arrival of Maharana Pratap to the throne)
साल 1572 में महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह द्वितीय इस दुनिया से चले गए. इसके बाद गद्दी को लेकर बातचीत शुरू हुई. महाराजा उदय सिंह की रानी धीर बाई चाहती थीं कि उदय सिंह का सबसे बड़ा बेटा जगमाल अपने पिता की गद्दी पर बैठे. लेकिन उस समय की स्थिति को देखते हुए वह मुगलों के आक्रमण को रोकने में सक्षम नहीं थे. इस वजह से सरकार में बैठे अधिकारियों ने महाराणा प्रताप को राजा बनाने का फैसला किया. इस तरह महाराणा प्रताप मेवाड़ की गद्दी पर बैठे.
महाराणा से अधीनता स्वीकार करवाने के लिए अकबर के प्रयास
जब महाराणा प्रताप अपने पिता की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठे तो उनके बड़े भाई जगमाल को यह पसंद नहीं आया, क्योंकि वह खुद को सत्ता का असली उत्तराधिकारी मानता था. इसके बाद दोनों भाइयों में दुश्मनी हो गई. जगमाल ने बदला लेने का मन बनाया और मुगल बादशाह अकबर की शरण में जाकर उसकी सेना में शामिल हो गया. सेना में भर्ती होते ही जगमाल को अकबर ने जहाजपुर नामक नगर में सम्मानित किया. मुगल बादशाह के साथ होने के कारण उसे भी विश्वास हो गया कि अब वह बदला लेने में अवश्य सफल होगा.
महाराणा के पिता मुगलों से परेशान होकर पहले ही चित्तौड़ से पलायन कर चुके थे. उस समय चित्तौड़ ही राजधानी हुआ करता था. इसके बाद मुगलों के लिए चित्तौड़ पर अधिकार करने का रास्ता और भी साफ हो गया. लेकिन मेवाड़ पर अधिकार करने का उनका प्रयास विफल हो गया. मेवाड़ पर महाराणा प्रताप का शासन था और महाराणा ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
अकबर ने महाराणा को मनाने के लिए कई बार अभियान चलाया, लेकिन वह हर बार असफल रहा. वर्ष 1573 तक अकबर ने महाराणा से 6 बार संधि करने की कोशिश की थी. आखिरी बार अकबर ने अपने सेनापति मानसिंह को भेजा जो मुगल बादशाह अकबर का उत्तराधिकारी था. वह उसका साला था, लेकिन इस बार भी उसे सफलता नहीं मिली. जब अकबर को कहीं से भी सफलता नहीं मिली तो उसने महाराणा से युद्ध करने का मन बना लिया. उसकी इसी रुचि ने हल्दीघाटी के प्रसिद्ध युद्ध को जन्म दिया.
विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध (World famous battle of Haldighati)
18 जून 1576 को हल्दीघाटी के मैदान में महाराणा प्रताप की सेना खड़ी थी और उनके सामने अकबर की विशाल सेना थी. अकबर की सेना का नेतृत्व मानसिंह और आसफ खान कर रहे थे. महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व राम शाह तंवर, चंद्रसेनजी राठौड़, रावत कृष्णदासजी चुंडावत और मानसिंहजी झाला झाला कर रहे थे. दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ. जिसमें महाराणा की सेना कम थी और उन्हें जान-माल दोनों का नुकसान ज्यादा हुआ.
इतिहासकार कहते हैं कि यह युद्ध अब तक का सबसे भीषण युद्ध था. ऐसा युद्ध पहले कभी नहीं हुआ था और भविष्य में भी नहीं होगा. कहा जाता है कि युद्ध में महाराणा के घोड़े चेतक ने भी उनका खूब साथ दिया था. लेकिन जब वह लड़ने आया तो चेतक ने हाथी के सिर पर पैर रख दिया ताकि महाराणा मानसिंह पहुंच सकें.
मानसिंह ने हाथी की सूंड पर तलवार बांधी हुई थी, इसलिए उसने चेतक पर हमला कर दिया और चेतक घायल हो गया, लेकिन फिर भी उसने महाराणा का साथ देना जारी रखा. इस युद्ध में चार घंटे तक भीषण संघर्ष हुआ. महाराणा प्रताप की सेना लगातार कमजोर होती जा रही थी. इस युद्ध में महाराणा की सेना ने 1600 से ज्यादा सैनिक खोए, लेकिन अकबर की सेना का आकार बड़ा होने के कारण उसके सिर्फ 150 सैनिक ही मारे गए और 350 से ज्यादा सैनिक घायल हुए.
हालाँकि मुगल सैनिक महाराणा को नहीं पहचान पाए, इस कारण महाराणा प्रताप पहाड़ियों में चले गए. इस युद्ध के परिणाम में अलग-अलग राय दी जाती है. कुछ लोग महाराणा को विजयी कहते हैं तो कुछ लोग अकबर को विजयी कहते हैं. राजपुताना में अपनी पकड़ मजबूत करने के बाद अकबर ने गुजरात, काबुल, कश्मीर, सिंध, बंगाल और कंधार को अपने साम्राज्य में मिला लिया था.
साल 1593 में अकबर ने दक्कन के इलाकों की ओर कूच करना शुरू किया. इस दौरान अहमदनगर पर उसका कब्जा हो गया. 1595 में उसे विरोध का सामना करना पड़ा. 1595 में अकबर ने दक्कन पर हमला किया. दक्कन में अकबर की सेना का सामना शासक रानी चांद बीबी से हुआ. साल 1595 तक मुगल सेना ने क्वेटा और मकरान के आसपास बलूचिस्तान के कुछ हिस्सों पर भी कब्जा कर लिया था. साल 1600 तक अकबर ने बुरहानपुर, असीरगढ़ किला और खानदेश पर कब्जा कर लिया था.
महाराणा प्रताप का पुन: आगमन (The return of Maharana Pratap)
अकबर मेवाड़ को जीतकर आराम से बैठ गया. अकबर पंजाब, बिहार और बंगाल में विद्रोहों में संलग्न रहा. दूसरी ओर, महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को पुनर्गठित किया और अपने क्षेत्र के पश्चिमी भाग को वापस जीत लिया. अब मेवाड़ मुगलों के नियंत्रण में था, लेकिन उस पर इतना ध्यान भी नहीं था.
इस शुभ अवसर का लाभ उठाकर महाराणा ने वर्ष 1582 में दिवेर में मुगल चौकी पर हमला किया और उस पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया. वर्ष 1585 में अकबर लाहौर चला गया. इसके बाद महाराणा ने कुंभलगढ़ और उदयपुर सहित पश्चिमी मेवाड़ पर अधिकार कर लिया और चावंड को अपनी राजधानी बनाया.
महाराणा प्रताप की मृत्यु (Death)
महाराणा प्रताप ने जीवन भर मुगलों से संघर्ष किया. मुगल सम्राट अकबर ने उनसे अपनी अधीनता स्वीकार करवाने के लिए कई बार प्रयास किए, लेकिन हर बार उनकी कोशिशें विफल रहीं. मुगलों से लगातार लड़ाई के कारण उनका शरीर क्षत-विक्षत हो गया था. राजस्थान ही नहीं बल्कि भारत के इस महान शासक ने 29 जनवरी 1597 को 56 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. महाराणा प्रताप के बाद उनके सबसे बड़े बेटे अमर सिंह गद्दी पर बैठे.
महाराणा प्रताप के बारें में कुछ दिलचस्प तथ्य (Some Intresting Facts About Maharana Pratap)
• महाराणा प्रताप की लंबाई 7 फीट 5 इंच और वजन 110 किलोग्राम था.
• महाराणा प्रताप के वक्ष कवच का वजन 72 किलोग्राम और भाले का वजन 81 किलोग्राम था.
• महाराणा प्रताप के हथियारों में ढाल, भाला, दो तलवारें और कवच शामिल थे.
• महाराणा महिलाओं को भी उचित सम्मान देते थे. एक बार उनके बेटे दुश्मन के खेमे से कुछ महिलाओं को ले आए थे. महाराणा ने उनके कृत्य की निंदा की और उन्हें उचित सम्मान के साथ वापस भेजने को कहा.
• महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम ‘चेतक’ था, जिसने हल्दीघाटी के युद्ध में भी उनकी काफी मदद की थी.
• मुगलों से लगातार संघर्ष के कारण उनके काल में आर्थिक संकट पैदा हो गया था. उस समय उनके मंत्री भामाशाह ने महाराणा की आर्थिक मदद की थी.
• महाराणा प्रताप गुरिल्ला युद्ध नीति में बहुत माहिर थे. उन्होंने अपने युद्धों में इसी रणनीति का इस्तेमाल किया था.
• महाराणा प्रताप को ‘आदिवासी कीका’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा जंगलों में बिताया था.
• राजस्थानी लोक कथाओं में महाराणा प्रताप को ‘नीला घोड़ा रा असवार’ के नाम से भी सम्मानित किया जाता है.
• चेतक के अलावा महाराणा प्रताप के पास रामप्रसाद नाम का एक हाथी भी था.
लोकप्रिय संस्कृति में महाराणा प्रताप (Legacy)
1540 में जन्मे महाराणा प्रताप भारत के वर्तमान राजस्थान के एक क्षेत्र मेवाड़ के 13वें शासक थे. जब वे मेवाड़ की गद्दी पर बैठे, उस समय जब कई राजपूत शासक मुगल सत्ता के सामने झुक चुके थे. लेकिन प्रताप ने अकबर की अधीनता कभी भी स्वीकार नहीं की. महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी, 1597 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी कायम है. महाराणा भारतीय लोकगीतों, गीतों और कहानियों में आज भी अमर है.
उदयपुर में फतेह सागर झील के पास स्थित महाराणा प्रताप स्मारक में महाराणा प्रताप की एक विशाल प्रतिमा है. उन्हें अपने प्रिय घोड़े चेतक पर सवार दिखाया गया है. इस स्मारक को एक खूबसूरत उद्यान में स्थापित किया गया है. हल्दीघाटी, जहां महाराणा प्रताप और अकबर के बीच प्रसिद्ध युद्ध हुआ था, यहां एक संग्रहालय स्थापित किया गया है. यह संग्रहालय युद्ध के विवरण, प्रताप की वीरता और चेतक की कहानियों को चित्रों के माध्यम से चित्रित करता है.
महाराणा प्रताप की जयंती, 9 मई को राजस्थान और अन्य स्थानों पर बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाई जाती है. राजस्थान के उदयपुर में स्थित हवाई अड्डे का नाम महाराणा प्रताप के सम्मान में रखा गया है. हल्दीघाटी में स्थित महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक में महाराणा प्रताप की एक विशाल प्रतिमा स्थापित है. यह स्मारक उनकी वीरता और देशभक्तों को श्रद्धांजलि देता है. हल्दीघाटी में चेतक स्मारक भी स्थित है, जहाँ उनके प्रिय घोड़े चेतक की याद में एक मूर्ति बनाई गई है.
निष्कर्ष (Conclusion)
इस लेख में हमने राजस्थान के इतिहास के एक महान और पराक्रमी शासक के जीवन परिचय पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है. इस लेख में हमने उनके प्रारंभिक जीवन, पारिवारिक जीवन, उनके शासनकाल और महाराणा के बारे में कुछ तथ्य शामिल किए हैं. प्रसिद्ध युद्ध ‘हल्दीघाटी का युद्ध’ पर भी चर्चा की गई है. वैसे तो हमने उनके जीवन के सभी पहलुओं को इस लेख में शामिल करने का प्रयास किया है. लेकिन फिर भी अगर आपको कोई कमी नज़र आए तो आप हमें अपनी राय ज़रूर दें. धन्यवाद!
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions)
महाराणा प्रताप का पूरा नाम क्या है?
महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसौदिया था. वे मेवाड़ के 13वें राजा थे. उनका जन्म 9 मई 1540 को हुआ था और वे 1572 से 1597 तक मेवाड़ के राजा रहे थे. महाराणा को लोककथाओं में 'आदिवासी कीका' नाम से भी संबोधित किया जाता है.
महाराणा प्रताप के दादा जी का क्या नाम था?
महाराणा प्रताप के दादा जी का नाम राणा सांगा (महाराणा संग्राम सिंह) था. राणा सांगा मेवाड़ के एक शक्तिशाली राजा थे जिन्होंने 1508 से 1528 तक शासन किया था.
महाराणा प्रताप का गांव कौन सा है?
महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के राजसमंद में स्तिथ कुम्भलगढ़ किले में हुआ था.
महाराणा प्रताप की राजधानी क्या है?
महाराणा प्रताप की राजधानी चित्तौड़गढ़ थी. लेकिन मुगल बादशाह अकबर के आक्रमण के बाद, महाराणा प्रताप ने चावंड को अपनी राजधानी बनाया था.